बालपना भोले गया, और जुवा महमंत ।
वृद्धपने आलस गया, चला जरन्ते अन्त ।।
वृद्धपने आलस गया, चला जरन्ते अन्त ।।
बेटा जाये क्या हुआ, कहा बजावै थाल।
आवन-जावन होय रहा, ज्यों कीड़ी का नाल।।
आवन-जावन होय रहा, ज्यों कीड़ी का नाल।।
भूखा-भूखा क्या करे, क्या सुनावे लोग।
भांडा घड़ निज मुख दिया, सोई पूर्ण जोग ।।
भांडा घड़ निज मुख दिया, सोई पूर्ण जोग ।।
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय।
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।
जब मैं था तब गुरू नहीं, अब गुरू हैं मैं नाय।
प्रेम गली अति सांकरी, ता मे दो न समाय।।
प्रेम गली अति सांकरी, ता मे दो न समाय।।
जो जाने जीव न आपना, करहीं जीव का सार।
जीवा ऐसा पाहौना, मिले ना दूजी बार।।
जीवा ऐसा पाहौना, मिले ना दूजी बार।।
जहां ग्राहक तंह मैं नहीं, जह मैं गाहक नाय।
बिको न यक भरमत फिरे, पकड़ी शब्द की छांय
बिको न यक भरमत फिरे, पकड़ी शब्द की छांय
ज्ञानी को ज्ञानी मिलै, रस की लूटम लूट।
ज्ञानी को आनी मिलै, हौवै माथा कूट।।
ज्ञानी को आनी मिलै, हौवै माथा कूट।।
तीरथ गये ते एक फल, सन्त मिले फल चार।
सत्गुरू मिले अनेक फल, कहें कबीर विचार।।
सत्गुरू मिले अनेक फल, कहें कबीर विचार।।
तब लग तारा जगमगे, जब लग उगे न सूर।
तब लग जीव जग कर्मवष, ज्यों लग ज्ञान न पूर।।
तब लग जीव जग कर्मवष, ज्यों लग ज्ञान न पूर।।
तेल तिली सौ ऊपजै, सदा तेल को तेल ।
संगति को बेरो भयो, ताते नाम फुलेल ।।
संगति को बेरो भयो, ताते नाम फुलेल ।।
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार।
तरूवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार।1।
तरूवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार।1।
दाया कौन पर कीजिये, का पर निर्दय होय।
सांई के सब जीव है, कीरी कुंजर दोय।।
सांई के सब जीव है, कीरी कुंजर दोय।।
नर नारायन रूप है, तू मति समझे देह।
जो समझै ले, खलक पलक में खोह।।
जो समझै ले, खलक पलक में खोह।।
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंड़ित होय।।
ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंड़ित होय।।
पत्ता बोला वृक्ष से, सुनो वृक्ष बनराय।
अब के बिछुड़े ना मिले, दूर पड़ेगे जाय।।
अब के बिछुड़े ना मिले, दूर पड़ेगे जाय।।
प्रेम भाव एक चाहिए, भेष अनेक बजाय।
चाहे घर में बास कर, चाहे बन मे जाय।।
चाहे घर में बास कर, चाहे बन मे जाय।।
परबति परबति में फिरया, नैन गंवाए रोइ।
सो बूटी पाऊं नहीं, जातै जीवनि होइ।।
सो बूटी पाऊं नहीं, जातै जीवनि होइ।।
गिरही सुवै साधु को, भाव भक्ति आनन्द ।
कहैं कबीर बैरागी को, निरबानी निरदुन्द।।
कहैं कबीर बैरागी को, निरबानी निरदुन्द।।
गुरू के सनमुख जो रहै, सहै कसौटी दुख ।
कहैं कबीर तो दुख पर वारों, कोटिक सूख ।।
कहैं कबीर तो दुख पर वारों, कोटिक सूख ।।
गिरिये परबत सिखर ते, परिये धरिन मंझार।
मूरख मित्र न कीजिये, बूड़ेा काली धार।।
मूरख मित्र न कीजिये, बूड़ेा काली धार।।
गुरू आज्ञा मानै नहीं, चलै अटपटी चाल।
लोक वेद दोनों गये, आये सिर पर काल।।
लोक वेद दोनों गये, आये सिर पर काल।।
गुरू आज्ञा लै आवही, गुरू आज्ञा लै जाय।
कहैं कबीर सो सन्त प्रिय, बहु विधि अमृत पाय।।
कहैं कबीर सो सन्त प्रिय, बहु विधि अमृत पाय।।
गुरूमुख गुरू चितवत रहे, बहु विधि अमृत पाय।
कहै कबीर बिसरे नही, यह गुरू मुख के अंग।।
कहै कबीर बिसरे नही, यह गुरू मुख के अंग।।
गुरू समरथ सिर पर खड़े, कहा कभी तोहि दास ।
रिद्धि-सिद्धि सेवा करै, मुक्ति न छोड़े पास।।
रिद्धि-सिद्धि सेवा करै, मुक्ति न छोड़े पास।।
गुरू भक्ति अति कठिन है, ज्यों खाड़े की धार।
बिना सांच पहुंचे नहीं, महा कठिन व्यवहार।।
बिना सांच पहुंचे नहीं, महा कठिन व्यवहार।।
चन्दन जैसा साधु है, सर्पहि सम संसार ।
वाके अग्ड़ लपटा रहे, मन मे नाहिं विकार ।
वाके अग्ड़ लपटा रहे, मन मे नाहिं विकार ।
चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय।
दुइ पट भीतर आइके, साबित बचा न कोय
दुइ पट भीतर आइके, साबित बचा न कोय
छीर रूप सतनाम है, नीर रूप व्यवहार ।
हसं रूप कोई साधु है, सत का छाननहार।।
हसं रूप कोई साधु है, सत का छाननहार।।
जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप।
जहाँ क्रोध तहाँ पाप है, जहाँ क्षमा तहाँ आप।।
जहाँ क्रोध तहाँ पाप है, जहाँ क्षमा तहाँ आप।।
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय।
यह आपा तो डा़ल दे, दया करे सब कोय
यह आपा तो डा़ल दे, दया करे सब कोय
जागन में सोवन करे, साधन में लौ लाय।
सूरत डोर लागी रहे, टूट नाहिं जाय।।
सूरत डोर लागी रहे, टूट नाहिं जाय।।
ज्यों तिल मांही तेल है, ज्यों चकमक में आग।
तेरा सांई तुझमें, बस जाग सके तो जाग ।
तेरा सांई तुझमें, बस जाग सके तो जाग ।