Friday 10 October 2014

Kabir Das Ji ke Dohe In Hindi. | Kabir Das Quotes

साधु आवत देखिकर, हंसी हमारी देह।
मन्द भाग मट्टी भरे, कंकर हाथ लगाय।।
साधु आया पाहुना,मांगे चार रतन।
धूनी पानी साथरा, सरधा सेती अन्न।।
साधु आवत देखिके, मन में करै भरोर।
सो तो होसी चूह्ना, बसै गांव की ओर।।
साधु मिलै यह सब हलै, काल जाल जम चोट।
शीश नवावत ढ़हि परै, अघ पावन को पोट।।
साधु बिरछ सतज्ञान फल, शीतल शब्द विचार।
जग में होते साधु नहिं, जर भरता संसार।।
साधु बड़े परमारथी, शीतल जिनके अंग।
तपन बुझावै ओर की, देदे अपनो रंग ।।
संत ही में सत बांटई, रोटी में ते टूक।
कहे कबीर ता दास को, कबहूं न आवे चूक ।।
सुख सागर का शील है, कोई न पावे थाह।
शब्द बिना साधु नहीं, द्रव्य बिना नहीं शाह ।।
सोना,सज्जन,साधु जन, टूट जुड़ै सौ बार।
दुर्जन कुम्भ कुम्हार के, ऐके धका दरार ।।
साधु गांठि न बांधई, उदर समाता लेय।
आगे-पीछे हरि खड़े जब भोगे तब देय।।
सुमरण की सुब्यों करो ज्यों गागर पनिहार।
होल-होले सुरत में, कहैं कबीर विचार।।
सब आए इस एक में, डाल-पात फल-फल।
कबिरा पीछा क्या राह, गह पकड़ी जब मूल।।
सिंह अकेला बन रहे, पलक-पलक कर दौर।
जैसा बन है आपना, तैसा बन है और।।
सांई आगे सांच है, सांई सांच सुहाय।
चाहे बोले केस रख, चाहे घौंट भुण्डाय।।
सन्त पुरूष की आरसी, सन्तों की ही देह।
लखा जो चहे अलख को, उन्हीं में लख लेह।।
सांई ते सब होते है, बन्दे से कुछ नाहिं ।
राई से पर्वत करे, पर्वत राई माहिं ।।
साधु सती और सूरमा, इनकी बात अगाध।
आषा छोड़े देह की, तन की अनथक साध।।
साईं आगे सांच है, साईं सांच सुहाय।
चाहे बोले केस रख, चाहे घौंट मुण्डाय।।
सुखिया सब संसार है, खावै और सोवे।

दुखिया दास कबीर है, जागै अरू रौवे।।
सतगुरू सम कोई, नहीं सात दीप नौ खण्ड।
तीन लोक न पाइये, अरू इक्कीस ब्रहम्ण्ड।।
सतगुरू मिले जु सब मिले, न तो मिला न कोय।
माता-पिता सुत बांधवा ये तो घर होय।।
मन मैला तन ऊजरा, बगुला कपटी अंग।
तासों तो कौवा भला, तन मन एकहि रंग ।।
मन दिया कहूं और ही, तन साधुन के संग ।
कहैं कबीर कोरी गजी, कैसे लागै रंग।।
मूरख को समुझावते, ज्ञान गांठि का जाय।
कोयला होय न ऊजला, सौ मन साबुन लाय।।
मैं सोचों हित जानिके, कठिन भयो है काठ।
ओछी संगत नीच की सरि पर पाड़ी बाट।।
मरेंगे मरि जायंगे, कोई न लेगा नाम ।
ऊजड़ जाय बसायेंगे, छेड़ि बसन्ता गाम।।
ये तो घर है प्रेम का, खाला का घर नाहिं।
सीस उतारे भुंई धरे, तब बैठें घर माहिं ।।
या दुनियां में आ कर, छांड़ि देय तू ऐंठ ।
लेना हो तो लेइले, उठी जात है पेंठ ।।
यह मन ताको दीजिये, सांचा सेवक होय।
सिर ऊपर आरा सहै, तऊ न दूजा होय।।
वेद थके, ब्रह्मा थके, याके सेस महेस।
गीता हूं कि गत नहीं, सन्त सन्त किया परवेस।।

No comments:

Post a Comment